Sunday, March 18, 2012

Fishy tales

आज रविवार के दिन मांस मछली खाना तो बचपन से ही एक त्योहार की तरह होता है , बिना रुकावट |
बंगलोर में कोई ख़ास मच्छी बाज़ार तो है नहीं , मुहल्ले के नुक्कड़ पर ही एक छोटा सा ठेका है | स्कूटर उठाये और भोरे भोरे चल दिए , चिम्की ( पिलास्टिक / झोला ) लेके | ताज़ा मछली तो सुबह ही मिलता है , फिर बासी होने में ज्यादा वक़्त तो लगता नहीं है | आज सोचे थे रोहू नहीं तो कमसे कम कतला तो ले ही आयेंगे | सरसों तेल का बघार तो दीलोदीमाग में चाय हुआ था | भीड़ तो पहले से ही जमा थी , दूकान पर | महिला पुरुष दोनों धक्कमदुक्की में लगे हुए थे , ताज़ा रोहू का माल unload हुआ था | कोई एक किलो तो कोई दो किलो कटवा रहा था |

एक हमउम्र महिला मच्छिवाले  को कुछ ज्यादा ही परेशान की हुई थी | पता नहीं सारी मछलियों का भाव पूछ पूछ कर भी उन्हें doubt था की कौन सा ले |
यहाँ तक की एक मछली का नाम तक पूछ डाला - "भईया, ये कौन सी मछली है "?
मच्छिवाले  ने जवाब दिया - "दीदी यह बाँगरा है "
"इसको कैसे बनाते है "
"हम तो पकड़ते है और बेचते है , आप जैसे बना लीजिये "
मैंने बीच में बोला - "बॉस मुझे एक किलो रोहू दे दो , बातें बाद में करते रहना "मुझे देर हो रही थी |
लड़की  दो तीन रोहू की देख परख के बाद बोली , "एक किलो मुझे भी तोल दो "
उसने एक रोहू उठा कर Digital मशीन पर रख दिया - ८८० ग्राम का वजन आया, महिला ने बोला - "नहीं नहीं कम है , एक किलो वाली निकालो "
फिर से दूसरी रोहू का वजन आया कुछ ९५० ग्राम , उस पर भी वह उतनी  खुश  नहीं थी, हालांकि फिरभी तैयार ओ गयी | बोलती है - "भैया , बंगाली कट करना , पेटी अलग से और पतला पतला |"
मच्छिवाला उस समय मेरी  मछली  का सफाई कर रहा था , उस पर भी बरस पढ़ी - "भईया मैंने बोला न की पेटी अलग से "
उसने बोला - "मैडम यह आपका नहीं है "
मैंने पैसे दिए और जैसे जाने लगा पीछे से फिर आवाज आई - "य़ेः  मछली ताज़ी है ना , गलफर तो देखा ही नहीं '
इस पर बेचारे मच्छिवाले ने  तपाक से उत्तर दिया - "एक साल की गारंटी है मैडम , दूँ ?"


pic courtesy 
http://www.adventuresofagoodman.com/hustle-bustle-at-a-locals-fish-market-in-india/ 

1 comment:

Unknown said...

Devnagri lipi mein likh nahi paane ka behad afsos hai! Par is leikh ko padh kar, barson baad mere priya janm bhoomi ki yaad is tarah aa gayi jise vyakt kar paana mushkil hai! Lekhak Bihar se hain, ye unki zubaan batlati hai! Mai bhi rajya ke usi hissei se hoon. Machli bazaar ka wo drishya maano Bihar ke Machli bazaar ki hi hai! Mahila ka vyavhaar, dukandaar ki sabr, aur eik anya grahak jo jyada shak ke nigaah se choti see khareedaari ko nahi dekhtei hain... Aur phir 'galphar', 'peiti', 'patla-patla'...yei sab shabd Bihar ki yaad is tarah dilatei hain, ki kya kahoon! Is leikh ko padh kar laga jaise lekhak ki patni nei bade pyaar sei sarson waali machli bana kar apne pariwar ko khilayee hongi... Aur dopahar ko peit pooja kar ke lekhak mahoday neend pharmanei se pahle, apni aaj ki dairy likh daali!