बारिशों के मौसम में कभी कभी मुसलाधार बारिश होती है , पानी बरसना भी कहते है | कोई बोलता है पानी गिर रहा है , जी नहीं वैसे नहीं जैसे एक आदमी गिर सकता है | गुरुत्वाकर्षण का खेल है , सब नीचे ही गिरेगा | मैंने भी आज तक किसीको भी नीचे से ऊपर की तरफ गिरते नहीं देखा है | अंतरिक्क्ष गया नहीं सो पता नहीं |
ऐसे ह़ी एक दिन जब ऑफिस की छत पर जाने से पता चला की मुसलाधार बारिश से सारा बैंगलोर भींग रहा है , तब हमें गरमागरम पकोड़े खाने की तलब जाग पड़ी | भाग कर कैफेटेरिया गए और चार प्लेट आर्डर दे दिया | विकट बाबु भी हमारे साथ थे, आजकल बहुत संभल संभल कर बोलते है , लेकिन ज़बान का क्या , कब फिसल जाए |
"देखो , कितना बारिश गिर रहा है " - आख़िरकार वो बोल पड़ा | पकोड़ें में देरी हो रही थी , बारिश की नमी ने मिट्टी की खुसबू को और भी सौंधी कर दिया था, मसखरी के लिए इतना बहाना कभी कम नहीं था |
मैंने हिंदी का पाठ पढाया - "बारिश होती है , गिर कैसे सकती है ? " कहीं उठ के भाग गयी तो |
अभिमन्यु की तरह चक्रव्यू में फँसते हुए कहा - "कुछ भी बोलते हो तुम "
"और क्या "
तभी ज़ोरदार बिजली कड़की , विकट ने कहा - "लगता है कोई ऊपर लड़ रहा है "
मैंने भी विचार प्रकट किया - "तभी तो पानी गिर रहा है , लड़ाई करने पर "
मुस्कुराते हुए कहा - "पानी गिरता नहीं , होता है "
मैंने समझाया , आकाश में बादल होते है ?
हाँ |
बादल आकाश में ह़ी इधर उधर घूमते है ?
हाँ|
'मान लो , दो बादल घूमते घूमते टकरा गए तो , उनके अन्दर जो बर्फ होती है वो नीचे गिरेगी '
हाँ |
'नीचे गिरते गिरते गर्मी से वो पानी बन जाता है ', हो गया ना |
हमारा विकट सर खुजा रहा था , बारिश गिरता नहीं है पर इसने पानी गिरा दिया | फिलहाल ज्यादा बात करने का वक़्त नहीं था , पकौड़े कहीं ठन्डे हो गए तो ?
"नल बल जल ,
ऊँचो चढ़े |
अंत ,
नीच को नीच |"
-© 2012 सत्य घटना पर आधारित
No comments:
Post a Comment