मुल्ला नसीरुद्दीन जैसे लोग दुनिया के हर कोने में मिलते है फर्क इतना होता होगा कोई कुछ ज्यादा ही नसीरुद्दीन होते है | वैसे तो नसीरुद्दीन हमारे समझदारी से जवाब दिया करते थे , चालाकी से, विकट उनसे कुछ बीसी ही ठहरे |
एक बार ज़नाब ने अपनी बाइक की चाभी बाईक में ही भूल गए | हमने देख लिया और चाभी चुपके से रख लिया | ऑफिस के अन्दर मैंने पुछा - "विकट , भाई मुझे ज़रा काम है , तेरी बाइक मिलेगी ?"
वो डरते हुए बोला - "मैंने तो आज बाईक ली ही नहीं " शिष्ट था आज वो |
मैंने बोला - "चल मज़ाक मत कर , ज़रूरी काम है "
"मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ "
"अच्छा, फिर ऑफिस कैसे आया " मेरे सवाल से सकपे में आ गया |
"बस से, या Cab से आया होगा, तुम्हे उससे क्या ?" शिष्टाचार भूलने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा |
तभी मैंने बोला- "तेरी बाईक देखी मैंने आज बाहर , हौर्न भी बज रहा था |"
उसने कहा - "तुम मेरी बात पे भरोसा करोगे या हौर्न पर "
"हौर्न पर "
थोड़ी देर बाद वो वापस आया और बोला - "यार मेरी
बाईक की चाभी खो गयी है , अब मैं क्या करूँ "
"क्यूँ हौर्न नहीं बजा तेरा उस वक़्त जब मैं तेरे से मदद मांग रहा था "
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