यादों के धुंए
उठते धुंए में घुल रही है
बेफिक्र ताज़ा हवा, और
ऊपर आसमाँ से बादल है
तैयार उमड़ने को |
सुबह से देख रहा हूँ
कचरे के ढेर को जलते हुए
शायद रात में ही
किसी ने आग लगाई होगी |
मेरी पुरानी यादें , हैं कचरे आज
जल कर खाक होनेको तैयार ,
जिन्हें संभाल रखना, भूलना
कुछ सही न था |
कल शाम मैंने सफाई की थी
कुछ पुराने अखबार के साथ
यादें भी फ़ेंक आया था
दफनाना मुश्किल था मेरे से |
-सौरभ राज शरण
20-09-2012
Bangalore
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