Tuesday, March 5, 2013

मोतिहारी के पेड़


इक आम का पेड़ था 
मोतिहारी के आँगन में 
उसके बौर कोई खाता न था 
घर में जो कोई ना था

My Grapefruit Tree

सब आजकल दुसरे शहर रहते है 
एक गागर का पेड़ वहीं 
फलों से लदा सूख रहा है 
कोई कम्बख्त काटता भी नहीं 

मैंने शीशम पर खुदा था 
अपना नाम , नम था वो तब 
अब खुश्क हो चला है 
पर भरा नहीं आजतक ।

अब वहां के पेड़ झुक से गए है 
और घास लम्बी होती जा रही है  


-सौरभ राज शरण 

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