खाना खाने का भी एक ढंग होता है , देखते है कोई एक हाथ से खाता है तो कोई दो हाथों से | मैंने बहुतों को देखा है , कुछ करीने से खाते है तो कुछ घिनौने से | बचपन में माँ डांटा करती थी , सर पर हाथ रख कर नहीं खाना चाहिए , मनहूसियत बसती है | बहुतों को छुरी- कांटे से खाने में न तो मज़ा आता है ना ही तृप्ति मिलती ही | एक दिन ऐसे ही ऑफिस कैफेटेरिया में हमसब बैठ कर खाना खा रहे थे , विकट भी साथ था | हमेशा की तरह सबसे बड़ा थाली भर कर बैठ गया | थोड़ी देर बाद हमने देखा की , उसने अपना बायाँ हाथ कान पर रख, दुसरे हाथ से खा रहा था | नज़ारा तो हंसनीय था ही , उसको और मजेदार बनाने के लिए मैंने पुछा - "क्या हुआ , ऐसे क्यूँ खा रहा है "?
इसके पहले विकट कुछ बोलता , हमारे मित्र ने कहा -"यह कबूतर है , इसीलिए "| "एक हाथ से अपनी इज्ज़त बचा रहा है |"
गौर कीजियेगा - हाल फिलहाल में एक बहुचर्चित सिनेमा आई है , गैंग्स ऑफ़ वास्सेपुर , जिसका बहुत ही मशहूर डायलोग है -" ये वासेपुर है , यहाँ कबूतर भी एक्के पंख से उड़ता है और दुसरे से अपना इज्ज़त बचाता है "
जाहिर है की यह डायलोग यहाँ फिट बैठता है |
मैंने आगे कहा - "अच्छा तो तुम्हारी इज्ज़त तुम्हारी कान है "
विकट शर्माते हुए कान खुजाने लगा |
2 comments:
वाकई विकट साहेब से मिलने कि इच्छा होती है..
दोस्त, तुम तो स्टार बनो ना बनो, विकट को स्टार बना दिए हो.. :D
thanks PD, come to bangalore sometime
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