विकट बुद्धि XVIII
कबीर के इस प्रचलित दोहे को कौन नहीं जानता -खैर, शायद गूगल पर कहीं से उसे यह दोहा मिला और सर खुजाने लगा |
कबीर के इस प्रचलित दोहे को कौन नहीं जानता -
"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ,
पंडित भया न कोए ,
ढाई आखर प्रेम के
पढ़े , सो पंडित होए ."
सन १५०० शताब्दी के समय, संत कबीर ने इस दोहे से पंडितों और पुराणी पीढियों पर जो कटाक्ष किया था वो आज भी उतना ही प्रभावशाली है |
साक्षर और पढ़े -लिखे में शायद जो अंतर होता है , उसका बहुत ही अच्छा उदहारण दिया है कबीर ने |
विकट की समझ में यह बात आई नहीं , शायद दिमाग का छेद छोटा होगा , शायद सिर्फ छेद ही हो |
बोलता है - "कबीर कुछ भी बोलता है !"
मैंने कहा - "क्यूँ क्या हुआ विकट"
"किताबें पढने से कुछ नहीं होता , ऐसा बोला कबीर ने "
"अच्छा , और क्या बोला "
"मतलब मैंने जो भी इंजीनियरिंग की पढाई की सब बेकार था , ढाई अक्षर कहाँ पढ़ाते है , किस कॉलेज में ?"
"उसका मतलब गहरे पानी में पैठने से मिलेगा , इतना छिछला नहीं है "
"लेकिन वह गलत है "
मेरे मित्र ने कहा - "भाई मेरे, यही तो अंतर है सिर्फ पढने और उसको समझने में "
"लेकिन वो तो प्यार करने को बोलता है , अगर किसी को पंडित बनना है तब , ऐसा कैसे , कुछ भी बोलते हो "
"तो फिर तुम्हारे हिसाब से कबीर गलत है "
"और क्या , मतलब लाइब्ररी वायिब्ररी का कोई मतलब ही नहीं है , मैंने तो गलती की पढ़ कर "
इस बार हमने कोशिश भी नहीं की समझाने की , आखिर कबीर ने बिलकुल सही कहा था |कबीर इंसान को चेतावनी दे रहे हैं की मूर्ख इंसान प्रभु को पहचान जा कर ताकि तेरे मे भी प्रेमरस भर जाये और सारी कायनात तुझे अपने लगे | मैंने कहा समझदार बनना पड़ता है सिर्फ रट्टू तोता बन कर काम नहीं चलता है | अगर तुम सबसे प्यार से बात करोगे तब तुम्हारा हर काम आसान हो जायेगा | ठीक वैसे ही जैसे एक तजुर्बेकार व्यक्ति ज्यादा महत्व्य पूर्ण होता है एक पढ़े लिखे से | कबीर के दोहे छोटे होते है पर बात वो बड़ी कह देता है | विकट अपना सर खुजाने लगता है |
थोड़ी देर बाद वो बोल उठता है - "अगर इंजीनियरिंग में मैंने एक गर्ल फ्रेंड बनाया होता तो शायद मैं आज तुम लोगों का बॉस होता , हैं ना |
Shit , मुझे कबीर पहले मिल गया होता "|
मैंने कहा - "काश "!
थोड़ी देर बाद वो बोल उठता है - "अगर इंजीनियरिंग में मैंने एक गर्ल फ्रेंड बनाया होता तो शायद मैं आज तुम लोगों का बॉस होता , हैं ना |
Shit , मुझे कबीर पहले मिल गया होता "|
मैंने कहा - "काश "!
और कबीर का एक दोहा याद आ गया मुझे -
"माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥"
-© 2011 सत्य घटना पर आधारित
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