मुसलाधार बारिश कल रात की
सड़को पर खेलीं है आँख मिचौली
कुछ गड्ढे भर गए हैं , जिसमें
नीले आकाश की दिखाई देती प्रतिबिम्ब
तुम्हारी याद दिलाती है मैली |
सोच कर रुक सा गया था,
कुछ गिले धुंधले बादल छा गए
फिर से गरज बरसने को तैयार |
इतने में एक गुजरती साईकल ने
उमड़ने से पहले ही रौंद गया
उस अक्स के ठीक बीचोबीच
चीरता हुआ, क्षण्भंगुरी था मैं
फिर से ज़मीन पर आ गया
अपने कपड़ो को बचाते हुए,
संभल कर चलना होगा अब ।
No comments:
Post a Comment