सुबह का एक सपना
रात की आंधी से
-सौरभ राज शरण
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चादर में लिपटा हुआ तंग
बरसात की ठंडी हवा के झोंके से
किसे उठना है पसंद
कमरे में पाया
सूखे गीले पत्तें थे फैले
बाहर देखा तो
पुराने पेड़ थे उखड़ चले
रात की आंधी से
बिखरे बेजान पड़े थे
चिड़ियों के घोंसलों से
गिरे हुए अंडे
टूटे सपनो का ग़म
भूल कर गोया
काम को निकलने की होड़
मेरा दिन शुरू हुआ
-सौरभ राज शरण
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