सूरज आज बुझा बुझा सा
बादलों की लकीरों में फंसता आया,
दुनिया के दायरों को लाघनें में
कोई कशमकश न हुई |
सूरज की इस हलकी आहट से
सबसे पहले उठ गया मैं ,
सपने बुरे थे आज चादर पर
सिलवटों के साथ सोए पूरी रात |
कितना सुंदर सवेरा
बालकनी के दहलीज़ पर
निकालो तो , उतर आया है |
- सौरभ राज शरण
प्रातः 6 बजे , 25 सितम्बर 2012
(It was such a beautiful morning that I took my time to sit on the chair and admire the rising Sun, with a pen in my hand and camera on the other...
I shot the words and wrote a picture.....)