Thursday, September 20, 2012

यादों के धुंए

यादों के धुंए 

उठते धुंए में घुल रही है 
बेफिक्र ताज़ा हवा, और 
ऊपर आसमाँ से बादल है 
तैयार उमड़ने को |

        सुबह से देख रहा हूँ 
        कचरे के ढेर को जलते हुए 
        शायद रात में ही 
        किसी ने आग लगाई होगी |
Love Letters ....

मेरी पुरानी यादें , हैं कचरे आज 
जल कर खाक होनेको तैयार ,
जिन्हें संभाल रखना, भूलना 
कुछ सही न था |

        कल शाम मैंने सफाई की थी 
        कुछ पुराने अखबार के साथ 
        यादें भी फ़ेंक आया था 
        दफनाना मुश्किल था मेरे से |


-सौरभ राज शरण 
   20-09-2012
    Bangalore

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