Friday, November 2, 2012

दिन शुरू

सुबह का एक सपना 
चादर में लिपटा हुआ तंग 
बरसात की ठंडी हवा के झोंके से
किसे उठना है पसंद 

कमरे में पाया 
सूखे गीले पत्तें थे फैले 
बाहर देखा तो 
पुराने पेड़ थे उखड़ चले









रात की आंधी से 
बिखरे बेजान पड़े थे 
चिड़ियों के घोंसलों से 
गिरे हुए अंडे 

टूटे सपनो का ग़म 
भूल कर गोया 
काम को निकलने की होड़ 
मेरा दिन शुरू हुआ 



-सौरभ राज शरण 

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