Monday, November 5, 2012

उतावालें अंगड़ाईयां

सुबह उठने से पता चला सपने तो चल रहे थे ,

उतावालें अंगड़ाईयों से नींद ही टूट गयी थी |
तुम जो चले गए थे ज़िन्दगी ही रुक गयी थी,
छू कर महसूस किया  सांसें तो चल रही थी |
Sands of Time
पुकारना तुझे ख़त्म न हुआ नाम तो बदल दिया था, 
दर्द फिर भी कम न हुआ खरोंचें कबकी भर गयी थी |
इस एहसास के धड़कन को दफ़न तो कर दिया था ,
हीं दूर से फिर भी आवाज़ तो सुनाई दे रही थी |

Post Box # 115
पता आज भी वही है मुकाम सिर्फ बदले थे ,
चिट्ठियों के ढेर में भी कोई खबर न थी |
इंतज़ार अब ख़त्म हुई आँखें तो तरस चुकी थी ,
दीवानगी अब भी वही है मंजिलों ने हेरफेर की थी |


-सौरभ राज शरण 

This website and its content is copyright of सौरभ राज शरण © 2012. 
कॉपीराइट © सौरभ राज शरण 
All Rights Reserved.



No comments: