Saturday, January 21, 2012

Alarm and Slumber

रात के दस बजे थे , आज ऑफिस में लेट होने की वजह से घर सिर्फ ढाई मिनट में पहुँचाना एक वरदान हो गया |  एक ऐसा वरदान जिसको पाने के लिए पहले खुद को लुटाना होता है एक श्राप की तरह  | हमारी भी आदत है थोड़ी पौसिटिव थिंकिंग वाली , जैसे काले बादल की सुनहरी लाईने होती है | उसी रास्ते आज ऑफिस जाते वक़्त मुझे आधे घंटे लगे | वैसे तो सिर्फ ३ किलोमीटर की दुरी है , पर बेहतर होगा अगर हम इसे घंटे में नापे तो | पेट्रोल भी तो महंगा हो गया है काफी , याद है जब पहली गाडी मारुती खरीदी थी कुछ बीस साल पहेले तो पेट्रोल  सिर्फ दस रुपये का आता था | कभी सोचा नहीं था , बीस साल बाद , इतने कम सालों में येः कुछ सत्तर पिचहत्तर साल का हो जायेगा | बिलकुल बूढ़े बाबा की तरह , दूर पहुंचा तो देता है जलाने पर , मगर खांसता और चुभता है | सब्जियां भी तो महंगी हो रही है , क्या खाएं ? घर जाकर फ्रिज के अंदर कुछ अंडे पड़े दिखे  , मेरे फेवरेट | पचास पैसे में एक उबले अंडे मिलते थे , मुझे याद है बड़ी दीदी की शादी दिसंबर में हुई थी जब चौक पर जा कर पुरे दस रुपये के अंडे खाये थे  | पेट में उतनी गर्मी नहीं होती थी तब| शायद कम पैसे में कम ही गर्मी मिलती है | मुर्गी के अंडे का मैं कुछ भी खा सकता हूँ , भोजन|
ब्रेड के साथ लपेट कर ऑमलेट बनाया , थोडा नमक और मिर्च डाला और आराम से टीवी देखते मैं अपना डिनर ख़त्म कर रहा था |
Seasons
बचपन में रात में टीवी पर कुछ नहीं आता था , DD का ज़माना था | रात आठ बजे बुधवार को चित्रहार आता था , एक से एक उम्दा गाने जिसका इंतज़ार हमें न जाने कितनी सदियों से रहता था | हमें भी उस समय होमेवोर्क करने को कोई नहीं बोलता था , और टीवी देखते हुए डिनर करना एक गुनाह था| पता नहीं कब आदत ख़राब हो गयी गुनाह करने की | आजकल तो ऍम टीवी पर चौबीसों घंटे नए गाने दिखता रहता है , कौन देखता होगा | 
सुबह जल्दी उठनी होगी , यह सोच कर नींद नहीं आई |  छुठ्पन  में तो किताबों के दरमियाँ ही सर रख के सो जाता था , सुबह बिस्तर पर उठता था | रात में न जाने कैसे मैं बेड पे पहुँच जाता , नींद में चलने की बिमारी तो थी ही नहीं | ऐसा मम्मी कहती है | आज भी नींद आ जाये यही सोच कर वही  नॉवेल उठा ली है , दस महीने हो गए है , साली ख़त्म नहीं होती है | किरदार भूलने लगता हूँ तो झटपट फिर से पढ़ कर यादें ताज़ा कर लेता हूँ | स्पीड कम सी हो गयी है ठीक वैसे ही जैसे पन्ने महीनो में गिने जाते है | और दूरियां मिनटों में |
अलार्म लगा ली है , सुबह जल्दी उठनी है |

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