Thursday, January 12, 2012

Kabir ke Dohe

विकट बुद्धि  XVIII


कबीर के इस प्रचलित दोहे को कौन नहीं जानता - 
"पोथी  पढ़  पढ़  जग  मुआ ,
पंडित  भया  न  कोए , 
ढाई  आखर  प्रेम  के  
पढ़े , सो  पंडित  होए ."
सन १५०० शताब्दी के समय, संत कबीर ने इस दोहे से पंडितों और पुराणी पीढियों पर जो कटाक्ष किया था वो आज भी उतना  ही प्रभावशाली है |
साक्षर और पढ़े -लिखे में शायद जो अंतर होता है , उसका बहुत ही अच्छा उदहारण दिया है कबीर ने |
विकट की  समझ  में यह बात आई नहीं , शायद दिमाग का छेद छोटा होगा , शायद सिर्फ छेद ही हो |
खैर, शायद गूगल पर कहीं से उसे यह दोहा मिला और सर खुजाने लगा |
बोलता है - "कबीर कुछ भी बोलता है !"
मैंने कहा - "क्यूँ क्या हुआ  विकट"
"किताबें पढने से कुछ नहीं होता , ऐसा बोला कबीर ने "
"अच्छा , और क्या बोला "
"मतलब मैंने जो भी इंजीनियरिंग की पढाई की सब बेकार था , ढाई अक्षर कहाँ पढ़ाते है , किस कॉलेज में ?"
"उसका मतलब गहरे पानी में पैठने से मिलेगा , इतना छिछला नहीं है "
"लेकिन वह गलत है "
मेरे मित्र ने कहा - "भाई मेरे, यही तो अंतर है सिर्फ पढने और उसको समझने में "
"लेकिन वो तो प्यार करने को  बोलता है , अगर किसी को पंडित बनना है तब , ऐसा कैसे , कुछ भी बोलते हो "
"तो फिर तुम्हारे हिसाब से कबीर गलत है "
"और क्या , मतलब लाइब्ररी वायिब्ररी का कोई मतलब ही नहीं है , मैंने तो गलती की पढ़ कर  "

इस बार हमने कोशिश भी नहीं की समझाने की , आखिर कबीर ने बिलकुल सही कहा था |कबीर  इंसान  को  चेतावनी  दे  रहे  हैं  की  मूर्ख  इंसान  प्रभु  को  पहचान  जा  कर  ताकि  तेरे  मे  भी  प्रेमरस  भर  जाये  और  सारी  कायनात   तुझे  अपने  लगे | मैंने कहा समझदार बनना पड़ता है सिर्फ रट्टू तोता बन कर काम नहीं चलता है | अगर तुम सबसे प्यार से बात करोगे तब तुम्हारा हर काम आसान हो जायेगा | ठीक वैसे ही जैसे एक तजुर्बेकार व्यक्ति ज्यादा महत्व्य पूर्ण होता है एक पढ़े लिखे से | कबीर के दोहे छोटे होते है पर बात वो बड़ी कह देता है |  विकट  अपना सर खुजाने लगता है |

थोड़ी देर बाद वो बोल उठता है - "अगर इंजीनियरिंग में मैंने एक गर्ल फ्रेंड बनाया होता तो शायद मैं आज तुम लोगों का बॉस होता , हैं ना |
Shit , मुझे कबीर पहले मिल गया होता "|
मैंने कहा - "काश "!


और कबीर का एक दोहा याद आ गया मुझे -

"माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । 
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥"

-© 2011 सत्य घटना पर आधारित

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